Thursday, May 22, 2008

Tuesday, April 15, 2008


आज से कुछ साल पहले की बात है मैं अपने एक िमत्र से िमलने उसके घर गया, वह मेरे लाख मना करने के बावजूद जबरदस्ती मुझे अपनी ससुराल ले गया, उस िदन न जाने मेरे मॅन पर क्या िफतूर चढा था, मैं कभी िकसी लड़की से बात भी नही करता था और उस िदन मैं अपने दोस्त की साली से मजाक मे बहूत कुछ कह गया तब तक मुझे मालूम न था की बात इतनी बढ़ जायेगी की मुझे उमर भर पछताना पड़ेगा एक चैलेन्ज से बात शुरू हुई थी
उसने कहा था एक जोश भरे अंदाज़ मे,......... “अगर मैंने तुम्हे मज़ा न चखाया तो मेरा नाम कल्पना नही”.........
मैं नादान था उन् सब बातों से जो होने वाली थी मेरे वहाँ से वािपस आने के ठीक दो िदन बाद मेरे दोस्त का फ़ोन आया और उसने मुझे वािपस बुला िलया और मैं ऑिफस से छुट्टी लेकर िफर से वहाँ पर पहुँच गया, आिखरकार वही हुआ जो मैंने सोचा था,
“कल्पना मुझसे शादी करना चाहती थी” मुझे जब इस बात का पता चला तो मैंने अपने दोस्त की पत्नी यािन की अपनी भाभी को समझाया की एक बार मे तुमने मेरे भीतर ऐसा क्या देखा जो इतना बड़ा फ़ैसला कर िलया आप लोगो ने, हो सकता है मेरा चाल -चलन ठीक न हो मैं शराबी भी हो सकता हूँ या मैं िकसी और से प्यार करता हूँ आप लोगो का यह फ़ैसला िबल्कुल ठीक नही है आप जाकर अपनी बहन को समझाओ वह अभी नादान है इन सब बातों से यह ठीक नही है बिल्क एक पागलपन है, मगर उन्होंने मेरी एक न मानी मेरे समझाने की अदा उन्हें और भा गई, और मुझे हाँ कहना पड़ा मैंने सोचा एक न एक िदन तो शादी करनी ही है कोई बात नही ऐसे ही सही बहूत वक्त गुजरा उस बैचेनी मे, मैं भी एक पागल िदवानो सा हर हफ्ते की छुट्टी मे उसके यहाँ जाना, उसके साथ समय िबताना, खाना-पीना साथ ऐसा लगता था अब उसके िबना मैं नही रह सकता शादी की िसर्फ़ बातें ही हुई थी िरश्ता नही बस कुछ रोज कर-कर के छे महीने बीत चुके थे मगर न जाने क्या मनहूस घड़ी थी वो जब प्यार के नाम पर ये िदल पहली बार िपघला था िकस्मत को यह मंजूर नही था एक िदन अचानक उसकी तिबयत ख़राब हो गई यह सच था या झूंट मैं नही जानता था, उसके एक करीब के चाचा थे िजनसे वो अपनी सारी बात शेयर करती थी मैंने उनसे जानना चाहा, उस समय वह भी वहाँ पर मोजूद थे मैंने सोचा जब उसकी इतनी हालत ख़राब है तो मैं उसके पास गया मैने उससे कहा “तुम्हे मेरी मोहब्बत का वास्ता अगर तुमने मेरी बात तली तो जाओ जाकर दवा ले आओ तो उसने मुझसे कहा तुम क्या सोच रहे हो मैं तुमसे शादी करूंगी भूल जाओ जो हुआ यह बात सुनकर मेरे पैरो तले से जमीन ही िनकल गई िफर भी मैंने इक बार उसके चाचा से पता क्या जो कल्पना ने कहा क्या वह सच है तो उन्होंने भी यही कहा वो तुमसे शादी नही करेगी मैं अपने िदल पर पत्थर रख कर वािपस आ गया, लेिकन एक बार मैंने सचाई जानने की कोिशश की मैंने उसके पड़ोस मे फ़ोन िकया तो वहाँ पर भी उसने मना कर िदया था की फ़ोन आए तो कह देना हम यहाँ नही रहते मैंने एक बार नही लगभग तीन बार फ़ोन िकया जब कोई जवाब नही िमला तो मुझे अपनी भूल पर रोने के िसवा कुछ बािक नही था मैं उसके चैलेन्ज को प्यार समझ बैठा था, मेरी एक जरा सी गलती की मुझे इतनी बड़ी सज़ा िमली अब तो प्यार के नाम से भी डर लगने लगा इश्क आग का दिरया होता है मैं जनता था मगर मैं ख़ुद ही जल जाऊंगा मुझे नही मालूम था,
कुछ वर्ष बीते ही थे की मेरे पिरवार ने मेरा िरश्ता कर िदया मगर मै अपने जख्मों पर वक्त का मरहम लगा चुक्का था पुरानी यादें भुलाने के िलए नए दोस्तो का सहारा लेकर जीवन जी ही रहा था की अचानक एकाएक मुझे िफर से वहाँ जाना पड़ गया
और कुछ वक्त के िलए मैं उसके गाँव मे रहने चला गया मेरी मुलाकात िफर से कल्पना से हुई मगर उसके चेहरे पर कोई गम न था वह बहूत खुश थी मगर उसकी खुशी के अन्दर एक एहसास िछपा था वो अपनी भूल पर बहूत शर्िमंदा थी,
उसने मुझसे कहा “तुमने कभी मुझे याद ही नही िकया” लेिकन ये तो मेरा िदल जानता था मैं उससे िकतना प्यार करता हूँ, उसने मुझे मेरा अतीत िफर से याद िदला िदया िजसे मैं बहूत किठनाइयो के साथ भूला चूका था और िफर से शुरू हो गई हम दोनों की दोस्ती मगर अब मेरी चाहत कल्पना मे नही थी क्योंिक मेरा िरश्ता हो चूका है मगर अब की बार वो मुझे सच-मुच चाहने लगी थी लेिकन मैं उस हादसे को नही भूल पाया था उसने तो यह भी नही सोचा की मैं यह सदमा सहन भी कर पाऊँगा या नही कुछ समय के बाद मैं वहाँ से वािपस आ गया और मेरी शादी हो गई अब मै अपने पिरवार को ही अपना वक्त दे पाता हूँ काम के बाद इतना समय ही नही िमलता िकसी दोस्त के यहाँ जाए अब भी कल्पना के फ़ोन आते हैं मगर एक दोस्त की तरह मैं अपने जीवन साथी के साथ िवश्वास घात नही कर सकता िकसी के प्यार की सज़ा मैं उन्हें क्यूं दूँ उनकी गलती नही है मेरी ही भूल थी…………….............

एक िकस्सा था तन्हाई का
जो साथ िनभाना चाहता था
न कभी हम िमलेंगे िफ़र से
मैं उन्हें िदखाना चाहता था

ये प्यास प्यार की थी चोटी
सागर से बुझाना चाहता था
िदल ने मुझको लाख सताया
मैं उन्हें समझाना चाहता था

अरमान बहे सब आंसू बनकर
मै उन्हें हँसाना चाहता था
हर दर्द की आहट कहती रही
एक बार वफ़ा मैं चाहता था

हर बार वफ़ा मैं चाहता था

धन्यवाद सिहत
अिमत सागर
09213589921